फिक्र है सबको खुद को सही साबित करने की,जैसे ये ज़िंदगी, ज़िंदगी नहीं, कोई इल्जाम है।
कहते हैं बुरा वक़्त सबका आता हैं,कोई निखर जाता हैं, कोई बिखर जाता हैं।
ज़िन्दगी की असली खूबसूरती ये नही की आप कितने खुश है,जिंदगी की असली खूबसूरती तो ये है कि दूसरे “आप “से कितने खुश हैं।
एक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी,न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेर बैठेंगे हम।
एक उम्र गुस्ताखियों के लिये भी नसीब हो,ये ज़िंदगी तो बस अदब में ही गुजर गई।
थोड़ी मस्ती थोड़ा सा ईमान बचा पाया हूँ,ये क्या कम है मैं अपनी पहचान बचा पाया हूँ,कुछ उम्मीदें, कुछ सपने, कुछ महकती यादें,जीने का मैं इतना ही सामान बचा पाया हूँ।
लोग अच्छे भी हैं यहाँ पर, गले लगाने की ज़रूरत है।प्यार भी है और तकरार भी, सिर्फ़ मुस्कराने की ज़रूरत है।
कितना भी पकड़ो फिसलता जरूर है ,ये वक्त है साहब बदलता जरूर है।