
नीचे आपके लिए आज से शुरू हुए 58वें GST काउंसिल की मीटिंग पर एक संक्षिप्त लेकिन जानकारीपूर्ण रिपोर्ट है—जिसका उद्देश्य GST दरों में कटौती और सरलीकरण पर विचार करना है।
आज-कल की GST काउंसिल मीटिंग का सार
- आज (3–4 सितंबर 2025) से शुरू हुई GST काउंसिल की दो दिवसीय बैठक में प्रमुख चर्चा GST की दरों में कटौती और स्लैब संरचना में सरलीकरण की हो रही है। यह बैठक वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता में हो रही है।
- प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है कि मौजूदा चार-स्तरीय स्लैब (5%, 12%, 18%, 28%) को सिर्फ दो—5% और 18% में बदल दिया जाए, और लग्जरी व ‘सिन’ गुड्स पर 40% की अतिरिक्त दर लगाई जाए।
संभावित दरों में कटौती के प्राथमिक बिंदु
- लगभग 175 उत्पादों—जैसे टेलकम पाउडर, टूथपेस्ट, शैम्पू—की GST दरें 18% से घटाकर 5% करने पर विचार है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स (TV, AC) और सीमेंट जैसी वस्तुओं पर कर 28% से घटाकर 18% किया जा सकता है।
- ऑटो सेक्टर में—1,200cc तक की पेट्रोल कारों के लिए GST 28% से घटाकर 18% करने का प्रस्ताव है, जबकि Rs 20–40 लाख की इलेक्ट्रिक वehicles पर GST बढ़ाकर 18% करने की संभावना है।
- दोपहिया उद्योग (जैसे Hero MotoCorp) मांग कर रहा है कि उनका GST भी 28% से घटाकर 18% किया जाए।
राज्यों को क्या मिलने या खोने वाला है?
- राज्यों को इस बदलाव से करीब ₹85,000 करोड़ से ₹2 लाख करोड़ वार्षिक राजस्व कमी का सामना करना पड़ सकता है।
- कर्नाटक में अनुमानित राजस्व हानि ₹15,000 करोड़ है।
- तेलंगाना जैसे राज्य लगभग ₹7,000 करोड़ वार्षिक नुकसान की आशंका व्यक्त कर चुके हैं—इसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने केंद्र से मुआवजे की मांग की है।
- दूसरी ओर, SBI रिसर्च का अनुमान है कि राज्यों को SGST और व्युत्पन्न राजस्व के माध्यम से ₹10 लाख करोड़ + ₹4.1 लाख करोड़ मिलेंगे, जिससे वे कुल मिलाकर “नेट गेनर” बने रहेंगे।
आर्थिक और बाजार पर प्रभाव
- STOck मार्केट्स में सकारात्मकता दिखी है—GST सुधारों के संभावित असर से Nifty और Sensex ने अच्छी बढ़त बनाई है।
- SMEs, FMCG, इलेक्ट्रॉनिक ब्रांड और ऑटो कंपनियों को उम्मीद है कि करों में कटौती से उनके उत्पादों की मांग बढ़ेगी और बाजार में नई गति आएगी।
निष्कर्ष
यह बैठक GST में ऐतिहासिक सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम है—जिसका मकसद टैक्स संरचना को सरल बनाना, compliance आसान करना और घरेलू खपत को बढ़ावा देना है। लेकिन इसके साथ ही राजस्व योगदान में कमी और राज्यों की वित्तीय स्थिरता जैसे संवेदनशील मुद्दे भी हैं। अब देखना यह है कि क्या केंद्र और राज्य आपसी समझौते पर पहुँचते हैं और इस दिशा में दीर्घकालिक लाभ सुनिश्चित होता है।